Friday, March 24, 2023

कब्ज क्यों होता है? पेट साफ़ कैसे रखें?

कब्ज के कई कारण हो सकते हैं। कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
1.अपच
2.पानी की कमी
3.अल्कोहल की अधिकता
4.थायराइड की समस्या
5.डायबिटीज की समस्या
6.लंबे समय तक निष्क्रिय रहना
7.दवाओं का उपयोग 

कब्ज से बचाव के लिए निम्नलिखित टिप्स को अपनाएं:

1. प्रतिदिन नियमित रूप से पानी पीएं।
2. अपने आहार में फल, सब्जी, अनाज और दालें शामिल करें।
3. अपने खाने को धीरे-धीरे चबाकर खाएं और अधिक मुखौटे से खाने से बचें।
4. रोजाना व्यायाम करें और लंबे समय तक निष्क्रिय न बैठें।
5. समय-समय पर आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लें।
इन टिप्स का अनुसरण करने से आप अपने पेट को स्वस्थ रख सकते हैं और कब्ज से बच सकते हैं।

Thursday, April 21, 2016

गर्भावस्था में मोटापे से बचें

गर्भावस्था में मोटापे से बचें 
                                गर्भवती महिलाओं को जरुरत से ज्यादा भोजन करने से बचना चाहिए, क्योंकि इसका असर उनके गर्भस्थ शिशु के शारीरिक विकास और स्वास्थ्य पर भी पड़ सकता है। एक शोध के अनुसार हाई कैलोरी डाईट गर्भस्थ शिशु में विकसित होने वाले लगभग 2000 जीन्स के लिए नुकसानदायक हो सकती है। हाई  फैट, हाई कार्बोहाईड्रेट डाइट शिशु के किडनी फंक्शंस और सूंघने की क्षमता पर दुष्प्रभाव डाल सकती है।
                               स्त्रीरोग विशेषज्ञों के मुताबिक गर्भावस्था के शुरुआती तीन-चार महीनों में महिलाओं को बैलेंस डाइट लेना चाहिए। फोलिक एसिड के साथ ही भोजन में भरपूर कैल्शियम और आयरन शामिल करना चाहिए। वहीं इस दौरान महिलाओं को अपना वजन नियंत्रित करने के लिए विशेष तौर से सतर्क रहने की जरूरत होती है, लेकिन कई महिलाएं जानकारी के अभाव में फैटी फूड का सेवन कर लेती हैं, जिससे बाद में उनके नवजात को स्वास्थ्य संबंधी परेशानी उठानी पड़ती है। अधिक वजन से मिसकैरेज का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि इन्हें डायबिटिज एवं हाई ब्लड प्रेशर की समस्या होती है।
                                शोधकर्ताओं के मुताबिक गर्भवतियों में मोटापा उनके स्वास्थ्य के साथ ही होने वाले बच्चे के लिए भी जोखिम बन सकता है। उच्च रक्तचाप की समस्या होने की स्थिति में बच्चा कम वजन का भी हो सकता है। मां के अधिक वजन होने से बच्चों का शारीरिक विकास भी प्रभावित हो सकता है। शिशु में टाइप 2 डायबिटीज, स्ट्रोक, हार्ट डिसीज और अल्झाइमर का कारण भी बन सकता है।
ऐसे करें खतरा कम
-- तनावयुक्त गर्भावस्था से बचने के लिए सबसे अच्छा तरीका है वजन घटाएं। फैमिली प्लानिंग से पहले महिलाओं को कुछ वजन कम करना चाहिए।
-- गर्भवती महिलाओं को वजन कम करने के अलावा उसे नियंत्रित करने की भी आवश्यकता होती है। इसलिए प्रतिदिन नियमित रुप से एक घंटे कसरत करें।
-- हाई फैट एवं हाई कार्बोहाईड्रेट डाईट से परहेज करें।
-- गर्भवती महिलाओं को सामान्यत: डॉक्टर्स भोजन में रोजाना 2200-2400 किलो कैलोरी लेने की सलाह देते हैं। वहीं जिनका वजन अधिक होता है उन्हें इससे कम कैलोरी यानि 1800 किलो कैलोरी का सेवन करना चाहिए।
-- अधिक वजन की गर्भवती महिलाओं को लगातार अपना चेकअप करवाना चाहिए। यदि वे मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से ग्रस्त हैं तो गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य के लिए रेगुलर स्क्रीनिंग आवश्यक है।

Sunday, August 23, 2015

कैसे बन जाती है वृक्कों एवं पित्ताशय में पथरी ?


कैसे बन जाती है वृक्कों एवं पित्ताशय में पथरी ?

                                      शरीर के अंदर ठोस पदार्थों के छोटे-छोटे कठोर कणों का संग्रह पथरी (stones) कहलाता है। शरीर में निर्मित विशिष्ट द्रव पदार्थ जैसे मूत्र या पित्त में किसी अवयव की अत्याधिक मात्रा पथरी का निर्माण कर देती है। सामान्यत: पथरी दो अंगों में अधिक बनती है - 1. पित्ताशय (Gall bladder) में, 2. मूत्राशय (Urinary bladder) व वृक्क (Kidney) में।
                                     वृक्कों व शेष मूत्र-तंत्र में पथरी बनने के अधिकांश मामलों का कोई भी निश्चित कारण ज्ञात नहीं है, फिर भी गर्म जलवायु में जल का कम सेवन तथा अधिकांश समय बिस्तर पर पड़े रहने को इसके लिए कुछ उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। वृक्क या गुर्दे की पथरी जिन्हें तकनीकी भाषा में केलकुलस (calculus) कहा जाता है, 70 फीसदी मामलों में कैल्शियम ऑक्जलेट तथा फास्फेट से बनी होती है। हरी पत्तेदार सब्जियों, कॉफ़ी आदि में ऑक्जेलिक अम्ल की अधिक मात्रा होती है। 20 प्रतिशत मामलों में गुर्दे की पथरी कैल्शियम, मैग्नीशियम व अमोनियम फास्फेट की बनी होती है। यह मूत्र जनन-तंत्र के संक्रमण से जुड़ी होती है।
                                      पित्ताशय की पथरी मुख्यत: कोलेस्ट्राल की बनी होती है लेकिन इसमें पित्त वर्णक व कैल्शियम यौगिक जैसे अन्य पदार्थ भी पाए जा सकते हैं। पित्ताशय की पथरी बनने का प्रमुख कारण पित्त के रासायनिक संघटन में बदलाव आ जाना है। अधिक मोटापे के समय यकृत पित्त में अधिक कोलेस्ट्राल मुक्त करता है, यह पथरी बनने का एक कारण है। दूसरी ओर जब यकृत कोलेस्ट्राल को विलेय अवस्था में बनाए रखने में सक्षम प्रक्षालक (detergent) पदार्थों को पित्त में कम मात्रा में स्रावित करता है, तब भी पथरी बन जाती है। कभी-कभी जीवाणु (bacteria) भी कोलेस्ट्राल को ठोसीकृत कर पथरी निर्माण कर देते हैं।


Tuesday, July 7, 2015

जानें ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) को -


जानें ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) को -
                                            
                                       यह अस्थियों का एक रोग है जो प्राय: वृद्धावस्था में होता है। इस रोग के होने का प्रमुख कारण अस्थियों में कैलिसयम की कमी का हो जाना है, जिसके फलस्वरूप अस्थियाँ कमजोर हो जाती है। अस्थियाँ मुख्यत: कैलिशयम तथा फास्फोरस से मिलकर बनी होती हैं। ज्यों-ज्यों आयु में वृद्धि होती है अस्थियों में भी परिवर्तन होता है। इनमें मिलने वाले कैलिश्यम और फास्फोरस की मात्रा कम होने लगती है, जिससे वह कमजोर होने लगती है। यह रोग हो जाने से अस्थियों का भार घट जाता है तथा मामूली सी चोट लगने से फ्रेक्चर आदि की आशंका बढ़ जाती है। यह रोग स्त्रियों में अधिक होता है, विशेषतया तब जब रजोनिवृत्ति (Menopause) अवस्था आरंभ होती है।

Saturday, May 30, 2015

विश्व तंबाकू निषेध दिवस विशेष (31 मई )


तंबाकू सेवन के खतरे - 
-- तम्बाकू सेवन से मुंह, गला, किडनी,पेट, छाती व स्तन कैंसर की आशंका होती है।
-- सिगरेट के धुएं मात्र से धुम्रपान नहीं करने वालों को भी 30 प्रतिशत फेफड़े के कैंसर का खतरा रहता है।
-- धुम्रपान से हृदय रोग की आशंका बढ़ जाती है। वर्तमान में 30 प्रतिशत युवा जो धुम्रपान करते हैं, ह्रदय रोग से पीड़ित हैं। ऐसे मरीजों की मृत्यु दर लगातार बढ़ रही है।
-- रोजाना 10 सिगरेट पीने वाले की आयु 30 प्रतिशत और 20 से अधिक सिगरेट पीने वाले की आयु सामान्य की तुलना में 50 फीसदी कम होती है।
-- धूम्रपान से सर्दी, खांसी, ब्रोंकाइटिस और फेफड़ों की बीमारी अधिक होती है।
-- प्रतिवर्ष लगभग 1.7 लाख बच्चों को कैंसर होता है जिसमें से 90 हजार बच्चे की कैंसर की वजह से मृत्यु हो जाती है।
-- हर दिन विश्व के लगभग 1 लाख युवा तंबाकू का किसी न किसी रूप में सेवन शुरू करते हैं।
-- तंबाकू से 25 से अधिक बीमारियां होती है।

Thursday, March 26, 2015

पहले बच्चे की मां बनने की बेहतर आयु है 25 से 29 -


पहले बच्चे की मां बनने की बेहतर आयु है 25 से 29 -

                                ज्यादातर महिलाएं मानती हैं कि मां बनने की आदर्श उम्र 25 से 29 वर्ष के मध्य है। एक सर्वे में अधिकांश महिलाओं ने इस बात को स्वीकार किया। हालांकि 17 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि इस तरह की आदर्श उम्र नहीं होती है। सर्वेक्षण के मुताबिक महिलाएं महसूस करती हैं कि यह उम्र खुद को कैरियर और आर्थिक रूप से संवारने के लिए बेहतर है, लेकिन वे मां बनने की चुनौती को भी इस उम्र में स्वीकार करती हैं।
                                21 प्रतिशत महिलाएं बायोलॉजिकल कारण को इसके लिए मानती हैं। महिलाएं ऐसे समय में बेहतर ताल-मेल चाहती हैं। इस उम्र को आदर्श उम्र करार देने की वजह आर्थिक और  के प्रति जागरूक होना है। सर्वेक्षण में शामिल की गई महिलाओं में आधे से ज्यादा माताएं थीं। सन्तानहीन महिलाओं में से 50 प्रतिशत ने दो बच्चों की मां बनने की योजना बनाई, जबकि एक तिहाई महिलाएं तीन से ज्यादा बच्चे चाहती हैं। 
                              ज्यादा महिलाएं मातृत्व को कैरियर से जोड़कर देखती हैं। 62 प्रतिशत महिलाओं ने स्वीकार किया कि बच्चे को जन्म देने का असर कैरियर पर विपरीत पड़ता है। मातृत्व का सुख प्राप्त कर रही महिलाओं में से 68 प्रतिशत ने कहा कि वे अपने बच्चे के जन्म देने के समय से खुश हैं। ज्यादातर महिलाओं ने बच्चे का जन्म 35 के पहले दिया था। 60 प्रतिशत महिलाएं जिन्होंने बच्चे को 35 से 39 के बीच जन्म दिया, उनका मानना है कि काश वे जवान होती। आर्थिक मजबूरी के चलते महिलाएं बच्चे को जन्म देने के बाद काम पर भी चली जाती हैं।

Wednesday, February 18, 2015

स्वाइन फ्लू : घबराएं नहीं, सावधान रहें


स्वाइन फ्लू : घबराएं नहीं, सावधान रहें

स्वाइन फ्लू के लक्षण - 

-- नाक का लगातार बहना, छींक आना, नाक जाम होना।
-- मांसपेशियों में दर्द या अकड़न होना।
-- सिर में भयानक दर्द।
-- कफ और कोल्ड, लगातार खांसी।
-- उनींदे रहना, अधिक थकान होना।
-- बुखार होना, दवा खाने के बाद भी बुखार का लगातार बढ़ना।
-- गले में खराश लगातार बढ़ना।

क्या करें -

-- लक्षण दिखे तो जांच कराएं।
-- डायबीटीज व इम्यूनिटी कम है, तो ज्यादा सावधानी रखें।
-- गर्भवती महिलाएं भीड़भाड़ वाली जैसी जगह जैसे सिनेमाहाल, बाजार या सामाजिक कार्यक्रमों में जाने से बचें।
--स्कूली बच्चे खांसी होने पर क्लास में दूरी बनाए रखें। जानकारी टीचर को दें।
-- ट्रेन में यात्रा करते समय अतिरिक्त सावधानी बरतें।

ये सावधानी बरतें -

-- भीड़ वाले स्थानों पर जाने से बचें, कोई छींक रहा हो तो दूर रहें।
-- हाथों को साबुन या हैंड वाश से कम से कम 20 सेकंड तक धोएं।
-- ऐसे व्यक्ति से जिसमें स्वाइन फ्लू जैसे लक्षण हों, दूरी बनाकर रखें।
-- लोगों से मिलने पर हाथ मिलाने, गले मिलने या चूमने से बचें।
-- खांसने-छींकने के लिए टिश्यू पेपर या साफ तौलिया इस्तेमाल करें।
-- ताजा भोजन करें।
-- शुरूआती लक्षण पर डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।
-- डाक्टरों की सलाह के बिना कोई भी दवाएं न खाएं।

इन्हें सावधान रहने की अधिक जरूरत -

-- 5 साल से कम उम्र के बच्चे, 65 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग व गर्भवती महिलाएं।
-- ये बीमारी वाले रहे अतिरिक्त सावधान
- फेफड़ों, किडनी या दिल की बीमारी।
- मस्तिष्क संबंधी
- कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग।
- मधुमेह।
- ऐसे लोग जिन्हें पिछले 3 साल में कभी भी अस्थमा की शिकायत रही हो।

आयुर्वेदिक इलाज -

-- 4-5 तुलसी के पत्ते, 5 ग्राम अदरक, चुटकी भर काली मिर्च पाउडर और इतनी ही हल्दी को एक कप पानी या चाय में उबालकर दिन में दो-तीन बार पिएं।
-- गिलोय (अमृता) बेल की डंडी को पानी में उबाल या छानकर पिएं।
-- आधा चम्मच हल्दी पौन गिलास दूध में उबालकर पिएं।

Tuesday, May 6, 2014

क्यों आती है छींक ?


क्यों आती है छींक ?

जब भी किसी व्यक्ति को छींक आती है, यह कहा जाता है कि उसे या तो सर्दी है या फिर एलर्जी है। लेकिन ऐसा होता नहीं है। आइये जानें कि हमें छींक क्यों आती है।
छींक वास्तव में शरीर की एक जटिल प्रतिक्रिया होती है। छींक तब आती है, जब नाक की तंत्रिकाएं नाक की झिल्ली पर सूजन, छोटे-छोटे कण या कोई ऐसा पदार्थ देखती है, जो एलर्जी कर सकते हैं, तो उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करती हैं। यही प्रतिक्रिया छींक के रुप में बाहर आती है। 
छींकने के लिए चिकित्सा विज्ञान में 'स्टर्नुटेशन' शब्द का प्रयोग किया जाता है और यह माना जाता है कि अगर किसी व्यक्ति की नाक में स्टर्नुटेशन कारक तत्व जैसे- काली मिर्च, ठंडी हवा या धूल चली जाए, तो नाक की तंत्रिकाएं दिमाग को इसकी जानकारी देती हैं। दिमाग,गले, छाती और पेट को एक निर्दिष्ट तरीके से अपने को सिकोड़ने को कहता है, जिससे ये तत्व जल्दी से जल्दी शरीर से बाहर निकालें जा सकें। जब दिमाग से भेजे गये सन्देश का पालन होता है, तब छींक आती है।

Sunday, January 19, 2014

उच्च रक्तचाप या हाइपर टेंशन :-

                 
                      एक स्वस्थ व्यस्क का रक्तचाप 100/60 से 140/90mmhg के बीच होता है। यदि लगातार दो बार जांच से यह 140/90 mmhg से अधिक हो, तो उच्च रक्तचाप या हाइपर टेंशन की स्थिति बनती है। यह हृदय और रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनियों पर जोर डालता है और कोरोनरी आर्टरी डिसीस या कोरोनरी हृदय रोग के कारण बनते हैं।

Friday, December 13, 2013

एस.एम.एस. का नशा खतरनाक :-


एस.एम.एस. का नशा खतरनाक :- 
                                           इंदौर के एक मेडिकल कॉलेज ने अपने एक सर्वेक्षण के माध्यम से आगाह किया है कि एस.एम.एस. का नशा मानसिक शांति और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है। जहां इससे क्रोध बढ़ता है वहीं बेचैनी और नींद नहीं आने की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है।                                       यह सर्वेक्षण 150 युवाओं पर किया गया, जिनकी उम्र 18 से 25 वर्ष के बीच रही। इससे नतीजा यह आया कि हमेशा एस.एम.एस. का प्रयोग करने वाले युवाओं में डिप्रेशन और डर की भावना उत्पन्न हो रही है। इस सर्वे में 47% युवतियों व 39% युवकों ने माना कि मोबाइल फ़ोन के मैसेज के द्वारा हर समय अपने दोस्तों के संपर्क में रहने से उनकी दिनचर्या में गड़बड़ी आती है।                                       60% युवाओं ने माना कि इसके कारण उनकी पढ़ाई का भी नुकसान होता है। 40% युवतियों और 45% युवकों ने कहा कि वे अनिद्रा के शिकार हैं।लगभग 55% युवा अपने मैसेज का उत्तर नहीं मिलने से नाराज हो जाते हैं, वहीं 32% सोचने लगते हैं कि कोई भी उनके संपर्क में रहना पसंद नहीं करते।

Monday, December 9, 2013

सर्दियों में बचें सर्दी-जुकाम से...


सर्दियों में बचें सर्दी-जुकाम से... 
         
                              यूं तो सर्दियों का मौसम सेहत बनाने का होता है, लेकिन सेहत के प्रति लापरवाही रोग आमंत्रित करने में देर नहीं लगाती। इस मौसम में ज्यादातर होने वाला रोग है सर्दी- जुकाम। सामान्यत: यह कोई बड़ा रोग नहीं है, लेकिन इसे नजरअंदाज करना कभी कभी घातक सिद्ध हो सकता है। आइये जानें सर्दी- जुकाम व इससे जुड़ी कुछ बातों को-
लक्षण:-           

         सर्दी- जुकाम के लक्षण सामान्य हैं। सर्दी होने के पहले बार-बार पानी पीने की इच्छा होना, गला सूखना गले में खराश, सिर भारी होना, छींक आना, नाक में खुजली होना।
सर्दी होने के कारण :-                            

                                     मुख्यत: सर्दी-जुकाम या नजला वायरस द्वारा फैलाया जाने वाला संक्रमण है,जो श्वसन प्रणाली के अगले हिस्से पर आक्रमण करता है। हमारी नाक और गले में एक अंदरूनी परत प्रतिरोधी कवच कहलाती है। जब हमें सर्दी होती है तो इसका मतलब है कि विषाणुओं ने इस प्रतिरोधी कवच को भेदकर भीतरी कोशिकाओं पर आक्रमण कर दिया है। श्लेष्मा युक्त परत में सूजन आने से श्वसन मार्ग अवरूद्ध हो जाता है और नाक से सांस लेने में कठिनाई होती है। श्लेष्मा (नाक से बहने वाला पानी) उत्पन्न करने वाली कोशिकाएं अधिक मात्रा में स्राव करती है जो नाक द्वारा बाहर बहने लगता है। घ्रानेंद्री भी रोगग्रस्त हो जाती है, इसलिए सुगंध या दुर्गन्ध भी महसूस नहीं होती।
कैसे फैलती है सर्दी :-                            आम धारणा है कि रोगग्रस्त व्यक्ति की छींक या उसकी नाक से निकले पानी द्वारा सर्दी एक से दूसरे में फैलती है यह काफी हद तक सही है, लेकिन हाथों से हाथों का संपर्क भी इस रोग के प्रसार में प्रमुख भूमिका निभाता है। रोगी से हाथ मिलाने या उसकी स्पर्श की हुई वस्तुओं को छूने से विषाणु हमारे हाथ पर आ जाते हैं और जब हम नाक या आंख को स्पर्श करते हैं तो वे हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।
बचाव एवं उपचार :- 

-- सर्दी से पीड़ित व्यक्ति के रुमाल,नेपकिन, टॉवेल आदि अलग रखें और अलग से धोएं।
-- यथासंभव गर्म पदार्थों का सेवन करें।
-- सर्दी की अधिकता में चिकित्सक के परामर्श से एंटीबायोटिक दवाएं लें।
-- खांसी,बंद नाक और बदन दर्द के लिए अलग से दवाएं ले सकते हैं।
-- सर्दी अधिक हो तो घर पर ही आराम करें।
-- जुकाम में यदि तीन दिन से ज्यादा बुखार बना रहे तो डॉक्टर को अवश्य दिखाएं। यह निमोनिया या सायनस संक्रमण भी हो सकता है।
-- गर्म पानी में कोल्ड रब डालकर भाप लें, इससे बंद नाक खुलेगी और सिर का भारीपन भी कम होगा।
-- सर्दी में घरेलू इलाज भी काफी फायदेमंद होता है। इसके लिए तुलसी के पत्ते,
काली मिर्च, लौंग, अदरक का काढ़ा बनाकर पीना असरकारक होता है।



Sunday, December 1, 2013

विश्व एड्स दिवस विशेष ( 1दिसम्बर 2013 ) :- एच.आई.वी. HIV संक्रमण से कैसे बचें ?


एच.आई.वी. HIV संक्रमण से कैसे बचें ?

-- एक ही यौन साथी के साथ वफादार रहें।
-- प्रत्येक यौन संबंध के समय हर बार नये कंडोम का इस्तेमाल करें।
-- नई सुई या सिरिंज का ही इस्तेमाल करें।
-- पंजीकृत ब्लड बैंक से ही रक्त लें व दें।
-- प्रत्येक गर्भवती माता को एच.आई.वी. की जाँच कराएँ।

यौन रोग -:
                यौन रोग मुख्य रूप से असुरक्षित यौन संबंध बनाने से फैलते हैं। प्रत्येक यौन सम्बन्ध के समय हर बार नये कंडोम का इस्तेमाल करने से यौन रोगों से बचा जा सकता है।

यौन रोग के लक्षण - :

-- पेट के निचले हिस्से में दर्द।
-- योनि,लिंग या गुदा से स्राव निकलना।
-- गुप्तांगों से या उसके आसपास फोड़े या छाले।
-- योनि या लिंग के पास सूजन।

ध्यान दें- यौन रोग एच.आई.वी. संक्रमण की आशंका को 5 से 10 गुना तक बढ़ा देता है।
यौन रोग को अनदेखा न करें, उसके लिए प्रशिक्षित डॉक्टर से पूरा इलाज करवाएं।

Thursday, November 28, 2013

क्यों गुड़गुड़ाता है पेट ?


 क्यों गुड़गुड़ाता है पेट :-
                               
                                 पेट में से आवाज आने को पेट गुड़गुड़ाना कहते हैं। प्राय: सभी लोगों ने इसे महसूस किया होगा। ऐसा तब होता है जब पेट ख़ाली रहता है और आमाशय की दीवारें भोजन को पचाने के लिए आपस में संकुचित होती हैं। पेट के खाली होने से वहां उपस्थित गैसें और पाचक तत्वों के कारण आवाजें उत्पन्न होती हैं,जिसे पेट का गुड़गुड़ाना कहा जाता है।
                                         वैसे तो भूख का पेट के गुड़गुड़ाने से कोई सीधा संबंध नहीं है, लेकिन भोज्य पदार्थ की अनुपस्थिति के कारण रक्त में कुछ निश्चित पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। भूख लगने पर मानव मस्तिष्क द्वारा इस बारे में संदेश प्रेषित किया जाता है। यह संदेश आमाशय और आंतो के लिए प्रेषित किया जाता है। रक्त में जैसे ही पोषक तत्वों की कमी होती है, मस्तिष्क से इस आशय का संदेश भेज दिया जाता है और यह संदेश मिलते ही आंते और आमाशय में यह प्रतिक्रिया होने लगती है।                                                                                    आंते और आमाशय इस बात के प्रति सतर्क नहीं रहते कि कौन सी चीज उन्हें संतुष्ट करेगी। इसलिए उनमें होने वाली प्रतिक्रिया के फलस्वरूप वहां उपस्थित गैसों और पाचक तत्वों में ही गति होने लगती है। इस कारण से पेट में गुड़गुड़ाने की आवाजें आने लगती है।

Sunday, October 27, 2013

स्वामी रामदेव द्वारा योग शिविरों के दौरान बताये जाने वाले चमत्कारिक प्रयोग :-


मोटापा एवं मधुमेह नाशक दलिया-
गेंहू 500 ग्राम,बाजरा 500 ग्राम,चावल 500 ग्राम,साबुत मूंग 500 ग्राम। सभी को समान मात्रा में लेकर, सेंककर दलिया बना लें। इसमें अजवाईन 20 ग्राम तथा सफेद तिल 50 ग्राम भी मिला लें। आवश्यकतानुसार लगभग 50 ग्राम दलिया को 400 ग्राम पानी में डालकर पकाएं,स्वादानुसार सब्जियों का हल्का नमक मिला लें। नियमित रूप से 15-30 दिन तक दलिया का सेवन करने से मधुमेह समाप्त हो जाता है। मोटापे से पीड़ित ह्रदय रोगी इस दलिया का नियमित सेवन कर निरापद रूप से अपना वजन कम कर सकते हैं।

ह्रदयरोग,अम्लपित्त,उदर रोग एवं मोटापे में लाभप्रद लौकी का रस -
लौकी 500 ग्राम,पुदीना पत्र 7नग,तुलसी पत्र 7नग। उक्त सभी से 1कप रस निकालकर प्रतिदिन प्रात: काल खाली पेट पीने से ह्रदय की धमनियों में हुए अवरोध भी खुल जाते हैं। अम्लपित्त एवं समस्त उदर रोगों का नाश करने के लिए लौकी रस का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए।

पुरानी खांसी की अचूक दवा-
काली मिर्च दिनभर में 5-7 नग धीरे-धीरे चूसने से खांसी में पहले ही दिन से तत्काल लाभ मिलता है। एक बार में 2-3 काली मिर्च मुंह में डालकर चूसें। वर्षों पुरानी खाँसी भी इस प्रयोग से ठीक होते देखा गया है।

Saturday, October 19, 2013

Google