खूनी बवासीर - खुनी बवासीर में मस्से खूनी सुर्ख होते है,इस बवासीर में किसी प्रक़ार की तकलीफ नही होती है केवल खून आता है।
बादी बवासीर - बादी वाली बवासीर में मस्से काले रंग के होते है,और मस्सों में खुजली,दर्द और सूजन होती है.
-- बवासीर के कारण :
बवासीर होने का प्रमुख कारण है लम्बे समय तक कठोर कब्ज बने रहना। जिन्हें भारी वजन उठाने पड़ते हों,- जैसे कुली, मजदूर, भारोत्तलक आदि उनमें भी इस बीमारी से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है। शराब, मांस, अण्डा, प्याज , लहसुन, मिर्च, मसाले का अति सेवन, रात्रि जागरण. किसी जुलाब की गोली का अधिक दिनॊ तक सेवन करना . आहार - विहार मे अनिमियता. इसके साथ ही जंक फ़ूड का बढता हुआ चलन और व्यायाम का घटता महत्व भी बवासीर के रोगियों को बड़ा रहा है.
-- चिकित्सा :
- सबसे पहले कब्ज दूर कर मल त्याग को सामान्य और नियमित करना जरूरी है। इसके लिए तरल पदार्थों,फलों, हरी सब्जियों का अधिक सेवन करना चाहिए। तली हुई चीजें, मिर्च-मसालेदार,गरिष्ठ भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।अनियमित दिनचर्या से बचना चाहिए.मलत्याग के समय जोर न लगाना चाहिए. नियमित व्यायाम और शारिरिक गतिशीलता को बनाये रखना चाहिए ।
- सुबह-शाम शौच जाना लाभकारी है. शौच के बाद स्वमूत्र से गुदा को धोना चाहिए। एक शीशी या डिब्बे में अपना मूत्र लेकर रख लेना चाहिए। इसके बाद गुदा को पुनः पानी से नहीं धोना है सिर्फ हाथ धो लेना है। गुदा में लगा मूत्र थोड़ी ही देर में सूख जाता है।यह उपाय गुणकारी है. बवासीर की प्रारंभिक अवस्था में यह प्रयोग करने से बवासीर से छुटकारा मिल जाता है।
- सुबह, शाम व सोते समय रूई के फाहे को 'कासीसादि तेल' में डुबोकर गुदा के मस्सों पर 3-4 माह तक या पूरा आराम होने तक प्रतिदिन लगाएं.
- एक चम्मच आंवले का चूर्ण सुबह- शाम शहद के साथ लेने से बवासीर में लाभ मिलता है,इससे पेट के अन्य रोग भी दूर होते है.
- ताजा मक्खन और काले तिल दोनो एक - एक ग्राम को मिलाकर खाने से बवासीर में फ़ायदा होता है.