Sunday, August 23, 2015

कैसे बन जाती है वृक्कों एवं पित्ताशय में पथरी ?


कैसे बन जाती है वृक्कों एवं पित्ताशय में पथरी ?

                                      शरीर के अंदर ठोस पदार्थों के छोटे-छोटे कठोर कणों का संग्रह पथरी (stones) कहलाता है। शरीर में निर्मित विशिष्ट द्रव पदार्थ जैसे मूत्र या पित्त में किसी अवयव की अत्याधिक मात्रा पथरी का निर्माण कर देती है। सामान्यत: पथरी दो अंगों में अधिक बनती है - 1. पित्ताशय (Gall bladder) में, 2. मूत्राशय (Urinary bladder) व वृक्क (Kidney) में।
                                     वृक्कों व शेष मूत्र-तंत्र में पथरी बनने के अधिकांश मामलों का कोई भी निश्चित कारण ज्ञात नहीं है, फिर भी गर्म जलवायु में जल का कम सेवन तथा अधिकांश समय बिस्तर पर पड़े रहने को इसके लिए कुछ उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। वृक्क या गुर्दे की पथरी जिन्हें तकनीकी भाषा में केलकुलस (calculus) कहा जाता है, 70 फीसदी मामलों में कैल्शियम ऑक्जलेट तथा फास्फेट से बनी होती है। हरी पत्तेदार सब्जियों, कॉफ़ी आदि में ऑक्जेलिक अम्ल की अधिक मात्रा होती है। 20 प्रतिशत मामलों में गुर्दे की पथरी कैल्शियम, मैग्नीशियम व अमोनियम फास्फेट की बनी होती है। यह मूत्र जनन-तंत्र के संक्रमण से जुड़ी होती है।
                                      पित्ताशय की पथरी मुख्यत: कोलेस्ट्राल की बनी होती है लेकिन इसमें पित्त वर्णक व कैल्शियम यौगिक जैसे अन्य पदार्थ भी पाए जा सकते हैं। पित्ताशय की पथरी बनने का प्रमुख कारण पित्त के रासायनिक संघटन में बदलाव आ जाना है। अधिक मोटापे के समय यकृत पित्त में अधिक कोलेस्ट्राल मुक्त करता है, यह पथरी बनने का एक कारण है। दूसरी ओर जब यकृत कोलेस्ट्राल को विलेय अवस्था में बनाए रखने में सक्षम प्रक्षालक (detergent) पदार्थों को पित्त में कम मात्रा में स्रावित करता है, तब भी पथरी बन जाती है। कभी-कभी जीवाणु (bacteria) भी कोलेस्ट्राल को ठोसीकृत कर पथरी निर्माण कर देते हैं।


Tuesday, July 7, 2015

जानें ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) को -


जानें ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) को -
                                            
                                       यह अस्थियों का एक रोग है जो प्राय: वृद्धावस्था में होता है। इस रोग के होने का प्रमुख कारण अस्थियों में कैलिसयम की कमी का हो जाना है, जिसके फलस्वरूप अस्थियाँ कमजोर हो जाती है। अस्थियाँ मुख्यत: कैलिशयम तथा फास्फोरस से मिलकर बनी होती हैं। ज्यों-ज्यों आयु में वृद्धि होती है अस्थियों में भी परिवर्तन होता है। इनमें मिलने वाले कैलिश्यम और फास्फोरस की मात्रा कम होने लगती है, जिससे वह कमजोर होने लगती है। यह रोग हो जाने से अस्थियों का भार घट जाता है तथा मामूली सी चोट लगने से फ्रेक्चर आदि की आशंका बढ़ जाती है। यह रोग स्त्रियों में अधिक होता है, विशेषतया तब जब रजोनिवृत्ति (Menopause) अवस्था आरंभ होती है।

Saturday, May 30, 2015

विश्व तंबाकू निषेध दिवस विशेष (31 मई )


तंबाकू सेवन के खतरे - 
-- तम्बाकू सेवन से मुंह, गला, किडनी,पेट, छाती व स्तन कैंसर की आशंका होती है।
-- सिगरेट के धुएं मात्र से धुम्रपान नहीं करने वालों को भी 30 प्रतिशत फेफड़े के कैंसर का खतरा रहता है।
-- धुम्रपान से हृदय रोग की आशंका बढ़ जाती है। वर्तमान में 30 प्रतिशत युवा जो धुम्रपान करते हैं, ह्रदय रोग से पीड़ित हैं। ऐसे मरीजों की मृत्यु दर लगातार बढ़ रही है।
-- रोजाना 10 सिगरेट पीने वाले की आयु 30 प्रतिशत और 20 से अधिक सिगरेट पीने वाले की आयु सामान्य की तुलना में 50 फीसदी कम होती है।
-- धूम्रपान से सर्दी, खांसी, ब्रोंकाइटिस और फेफड़ों की बीमारी अधिक होती है।
-- प्रतिवर्ष लगभग 1.7 लाख बच्चों को कैंसर होता है जिसमें से 90 हजार बच्चे की कैंसर की वजह से मृत्यु हो जाती है।
-- हर दिन विश्व के लगभग 1 लाख युवा तंबाकू का किसी न किसी रूप में सेवन शुरू करते हैं।
-- तंबाकू से 25 से अधिक बीमारियां होती है।

Thursday, March 26, 2015

पहले बच्चे की मां बनने की बेहतर आयु है 25 से 29 -


पहले बच्चे की मां बनने की बेहतर आयु है 25 से 29 -

                                ज्यादातर महिलाएं मानती हैं कि मां बनने की आदर्श उम्र 25 से 29 वर्ष के मध्य है। एक सर्वे में अधिकांश महिलाओं ने इस बात को स्वीकार किया। हालांकि 17 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि इस तरह की आदर्श उम्र नहीं होती है। सर्वेक्षण के मुताबिक महिलाएं महसूस करती हैं कि यह उम्र खुद को कैरियर और आर्थिक रूप से संवारने के लिए बेहतर है, लेकिन वे मां बनने की चुनौती को भी इस उम्र में स्वीकार करती हैं।
                                21 प्रतिशत महिलाएं बायोलॉजिकल कारण को इसके लिए मानती हैं। महिलाएं ऐसे समय में बेहतर ताल-मेल चाहती हैं। इस उम्र को आदर्श उम्र करार देने की वजह आर्थिक और  के प्रति जागरूक होना है। सर्वेक्षण में शामिल की गई महिलाओं में आधे से ज्यादा माताएं थीं। सन्तानहीन महिलाओं में से 50 प्रतिशत ने दो बच्चों की मां बनने की योजना बनाई, जबकि एक तिहाई महिलाएं तीन से ज्यादा बच्चे चाहती हैं। 
                              ज्यादा महिलाएं मातृत्व को कैरियर से जोड़कर देखती हैं। 62 प्रतिशत महिलाओं ने स्वीकार किया कि बच्चे को जन्म देने का असर कैरियर पर विपरीत पड़ता है। मातृत्व का सुख प्राप्त कर रही महिलाओं में से 68 प्रतिशत ने कहा कि वे अपने बच्चे के जन्म देने के समय से खुश हैं। ज्यादातर महिलाओं ने बच्चे का जन्म 35 के पहले दिया था। 60 प्रतिशत महिलाएं जिन्होंने बच्चे को 35 से 39 के बीच जन्म दिया, उनका मानना है कि काश वे जवान होती। आर्थिक मजबूरी के चलते महिलाएं बच्चे को जन्म देने के बाद काम पर भी चली जाती हैं।

Wednesday, February 18, 2015

स्वाइन फ्लू : घबराएं नहीं, सावधान रहें


स्वाइन फ्लू : घबराएं नहीं, सावधान रहें

स्वाइन फ्लू के लक्षण - 

-- नाक का लगातार बहना, छींक आना, नाक जाम होना।
-- मांसपेशियों में दर्द या अकड़न होना।
-- सिर में भयानक दर्द।
-- कफ और कोल्ड, लगातार खांसी।
-- उनींदे रहना, अधिक थकान होना।
-- बुखार होना, दवा खाने के बाद भी बुखार का लगातार बढ़ना।
-- गले में खराश लगातार बढ़ना।

क्या करें -

-- लक्षण दिखे तो जांच कराएं।
-- डायबीटीज व इम्यूनिटी कम है, तो ज्यादा सावधानी रखें।
-- गर्भवती महिलाएं भीड़भाड़ वाली जैसी जगह जैसे सिनेमाहाल, बाजार या सामाजिक कार्यक्रमों में जाने से बचें।
--स्कूली बच्चे खांसी होने पर क्लास में दूरी बनाए रखें। जानकारी टीचर को दें।
-- ट्रेन में यात्रा करते समय अतिरिक्त सावधानी बरतें।

ये सावधानी बरतें -

-- भीड़ वाले स्थानों पर जाने से बचें, कोई छींक रहा हो तो दूर रहें।
-- हाथों को साबुन या हैंड वाश से कम से कम 20 सेकंड तक धोएं।
-- ऐसे व्यक्ति से जिसमें स्वाइन फ्लू जैसे लक्षण हों, दूरी बनाकर रखें।
-- लोगों से मिलने पर हाथ मिलाने, गले मिलने या चूमने से बचें।
-- खांसने-छींकने के लिए टिश्यू पेपर या साफ तौलिया इस्तेमाल करें।
-- ताजा भोजन करें।
-- शुरूआती लक्षण पर डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।
-- डाक्टरों की सलाह के बिना कोई भी दवाएं न खाएं।

इन्हें सावधान रहने की अधिक जरूरत -

-- 5 साल से कम उम्र के बच्चे, 65 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग व गर्भवती महिलाएं।
-- ये बीमारी वाले रहे अतिरिक्त सावधान
- फेफड़ों, किडनी या दिल की बीमारी।
- मस्तिष्क संबंधी
- कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग।
- मधुमेह।
- ऐसे लोग जिन्हें पिछले 3 साल में कभी भी अस्थमा की शिकायत रही हो।

आयुर्वेदिक इलाज -

-- 4-5 तुलसी के पत्ते, 5 ग्राम अदरक, चुटकी भर काली मिर्च पाउडर और इतनी ही हल्दी को एक कप पानी या चाय में उबालकर दिन में दो-तीन बार पिएं।
-- गिलोय (अमृता) बेल की डंडी को पानी में उबाल या छानकर पिएं।
-- आधा चम्मच हल्दी पौन गिलास दूध में उबालकर पिएं।

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