गर्भावस्था में मोटापे से बचें
गर्भवती महिलाओं को जरुरत से ज्यादा भोजन करने से बचना चाहिए, क्योंकि
इसका असर उनके गर्भस्थ शिशु के शारीरिक विकास और स्वास्थ्य पर भी पड़ सकता
है। एक शोध के अनुसार हाई कैलोरी डाईट गर्भस्थ शिशु में विकसित होने वाले
लगभग 2000 जीन्स के लिए नुकसानदायक हो सकती है। हाई फैट, हाई
कार्बोहाईड्रेट डाइट शिशु के किडनी फंक्शंस और सूंघने की क्षमता पर
दुष्प्रभाव डाल सकती है।
स्त्रीरोग विशेषज्ञों के मुताबिक गर्भावस्था के शुरुआती तीन-चार महीनों में
महिलाओं को बैलेंस डाइट लेना चाहिए। फोलिक एसिड के साथ ही भोजन में भरपूर
कैल्शियम और आयरन शामिल करना चाहिए। वहीं इस दौरान महिलाओं को अपना वजन
नियंत्रित करने के लिए विशेष तौर से सतर्क रहने की जरूरत होती है, लेकिन कई
महिलाएं जानकारी के अभाव में फैटी फूड का सेवन कर लेती हैं, जिससे बाद में
उनके नवजात को स्वास्थ्य संबंधी परेशानी उठानी पड़ती है। अधिक वजन से
मिसकैरेज का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि इन्हें डायबिटिज एवं हाई ब्लड प्रेशर
की समस्या होती है।शोधकर्ताओं के मुताबिक गर्भवतियों में मोटापा उनके स्वास्थ्य के साथ ही होने वाले बच्चे के लिए भी जोखिम बन सकता है। उच्च रक्तचाप की समस्या होने की स्थिति में बच्चा कम वजन का भी हो सकता है। मां के अधिक वजन होने से बच्चों का शारीरिक विकास भी प्रभावित हो सकता है। शिशु में टाइप 2 डायबिटीज, स्ट्रोक, हार्ट डिसीज और अल्झाइमर का कारण भी बन सकता है।
ऐसे करें खतरा कम
-- तनावयुक्त गर्भावस्था से बचने के लिए सबसे अच्छा तरीका है वजन घटाएं। फैमिली प्लानिंग से पहले महिलाओं को कुछ वजन कम करना चाहिए।
-- गर्भवती महिलाओं को वजन कम करने के अलावा उसे नियंत्रित करने की भी आवश्यकता होती है। इसलिए प्रतिदिन नियमित रुप से एक घंटे कसरत करें।
-- हाई फैट एवं हाई कार्बोहाईड्रेट डाईट से परहेज करें।
-- गर्भवती महिलाओं को सामान्यत: डॉक्टर्स भोजन में रोजाना 2200-2400 किलो कैलोरी लेने की सलाह देते हैं। वहीं जिनका वजन अधिक होता है उन्हें इससे कम कैलोरी यानि 1800 किलो कैलोरी का सेवन करना चाहिए।
-- अधिक वजन की गर्भवती महिलाओं को लगातार अपना चेकअप करवाना चाहिए। यदि वे
मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से ग्रस्त हैं तो गर्भस्थ शिशु के
स्वास्थ्य के लिए रेगुलर स्क्रीनिंग आवश्यक है।
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